
सूरसागर एक जमाने राज परिवार का मनमोहक तालाब था, इसका अपना इतिहास, ऐतिहासिक महत्त्व, किसने की उपेक्षा
- बड़े बजट फिर बना झील, मगर स्थायी क्यों नहीं
- सूरसागर की सफाई पर हर साल कितने होते खर्च, कौन देगा हिसाब
रितेश जोशी
RNE Special.
देश की आजादी से पहले जब बीकानेर राज्य था और यहां राजशाही थी। तब की कई बड़ी निशानियां अब भी हमारे शहर बीकानेर में मौजूद है। जिनके पीछे उनका एक गौरवमयी इतिहास भी दर्ज है।
इनमें से राजघराने के जिस स्थान का सबसे ज्यादा उल्लेख लोकतंत्रीय व्यवस्था में होता है, वो स्थान है सूरसागर। बीकानेर का बच्चा बच्चा इस नाम से परिचित है। किसी को भी इसके बारे में बताने की जरूरत नहीं पड़ती। इसको हम यदि अपनी अनमोल विरासत भी कहें तो गलत नहीं होगा। सूरसागर हमारी विरासत है, हमारी अनमोल धरोहर है।
पहले का सूरसागर:
राजशाही के समय बना सूरसागर उस समय का मनमोहक तालाब था। जूनागढ़ की खिड़कियों से इस मनमोहक तालाब को देख प्रकृति का आनन्द राज परिवार के लोग उस समय लिया करते थे। इससे इस बात का अंदाजा लगता है कि ये उस खूबसूरती का प्रतीक था। पुराने चित्र यदि हम सूरसागर के देखें तो आज भी यही आभास होता है।
फिर बिगड़ा स्वरूप:
लोकतंत्रीय व्यवस्था बनी। जूनागढ़ के आसपास रहने वालों के लिए स्थानीय निकायों ने नया सोच रख सूरसागर जैसी धरोहर को बचाने का नहीं सोचा, बल्कि नालों को इससे ही भीतर जोड़ दिया। देखते देखते सुरसागर ने अपना आब खो दिया और यह गंदा तालाब बन गया। जो गंदे पानी व कीचड़ से लबालब रहता था। इसके पास से नाक बंद किये बिना निकलना मुश्किल था।
लोगों का विरोध, पर सुना नहीं गया:
सूरसागर एक गंदा तालाब बनने के बाद बीकानेर के लोगों ने कड़ा प्रतिवाद किया। धरने किये, प्रदर्शन किये, आंदोलन किये। मगर पहले नगर पालिका, फिर नगर परिषद और फिर नगर निगम, इन सबकी उपेक्षा करता रहा और एक गंदगी का समुद्र सा बन गया। ध्यान इस पर नगर विकास न्यास ने भी नहीं दिया।
राजनीतिक मुद्दा बना:
राजनेताओं के लिए सूरसागर वरदान बन गया। जो भी स्थानीय निकाय, विधानसभा या लोकसभा का चुनाव लड़ता वो इसे सही कराने का वादा कर वोट मांगता। वोट पर वोट गिरते रहे और सूरसागर गंदा होता रहा। लोग राजनेताओं के वादे से उकता भी गये। पर उनके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं था।
सरकारी विभागों के लिए लाभदायी:
गंदा हुआ सूरसागर सरकारी विभागों के लिए दुधारू गाय बन गया। स्थानीय निकाय साल में दो बार सफाई कराते और बड़ा बजट धंधे लगा देते। उस बजट को कुल जोड़ा जाए तो शहर में अनेक जगहों पर इस तरह के अच्छे तालाब बन जाये। मगर ये काम कोई क्यों करे, दुधारू गाय जो ठहरी।
फिर बनी नई योजना:
उस समय अशोक गहलोत राज्य के सीएम थे और डॉ बी डी कल्ला मंत्री थे। सूरसागर को झील में बदलने की वृहद योजना बनी। बजट प्रावधान हुआ। लोगों की उम्मीदों को पंख लगे। मगर वो सरकार इस काम को शुरू नहीं कर सकी।
फिर वसुंधरा राजे सीएम बनी। उनकी जिद को सब जानते है। उन्होंने अधिकारियों को समय सीमा बता इसे झील बनाने का काम शुरू करवा दिया। उनके डर से तय समय पर काम पूरा हो गया। सूरसागर को उसका खोया आब भी मिलने लगा।
मगर कब तक..
इस झील के लिए इंदिरा गांधी नहर का पानी आरक्षित हुआ। कद्दावर नेता देवीसिंह भाटी व सिद्धि कुमारी जी लगातार सुध लेकर कुछ न कुछ नया करवाते रहे। मगर लालफीताशाही के कारण ठोस व स्थायी सुधार हुआ ही नहीं। ज्यादा शोर मचता तो जन धन खर्च कर एक बार साफ कर दिया जाता। पानी भरा दिया जाता। नावों को रख दिया, जो लगातार एक महीने भी शायद ही चली हो। ये गंदा होता रहता है, दुधारू गाय की तरह सरकारी विभाग बजट खर्च करते रहते है। एक साल लगातार ये झील बना रहे, ये सपना तो वसुंधरा जी का भी कभी पूरा नहीं हुआ।
जरूरत ये है:
कोई जन प्रतिनिधि या समाज सेवी जागे और सरकारी विभागों से यह आंकड़ा जुटाए कि झील बनने के बाद इसकी सफाई व मरम्मत पर कितना खर्च हुआ। वो आंकड़ा देखकर हर कोई अचंभित होगा। फिर न्याय की मांग लोकतांत्रिक व न्यायिक तरीके से की जाए।
हम सहन नहीं करेंगे, विरोध होगा:
शहर कांग्रेस के महामंत्री राहुल जादुसांगत का कहना है कि सूरसागर हमारे बीकानेर की अनमोल धरोहर व बड़ी विरासत है। जिसको लेकर ये सरकार व स्थानीय निकाय लापरवाह है। बारिश आएगी, फिर इसे गंदे पानी से भर दिया जायेगा। फिर सफाई के नाम पर जन धन की बर्बादी होगी। कांग्रेस यह सहन नहीं करेगी। स्थायी समाधन की मांग को लेकर हम स्थानीय निकाय व जिले के प्रभारी मंत्री से मिलेंगे। सुधार के लिए समय देंगे। उस अवधि में सुधार नहीं हुआ तो कांग्रेस धरोहर की रक्षा के लिए जन आंदोलन करेगी।
राहुल जादुसंगत, महामंत्री, शहर जिला कांग्रेस कमेटी